नाज़िम हिक़मत ( 15 जनवरी !902-03 जून 1963 ) तुर्की के क्रांतिकारी कवि, दुनिया के जाने माने रचनाकारों में गिने जाते हैं। क्रन्तिकारी विचारों और कार्यों से सम्बद्ध होने की वजह से उनके ऊपर फौजी मुकदमा दायर किया गया। उन्होंने कारावास और यातनाएं झेलीं। उनकी कवितायेँ विश्व भर में अनुवादित हुई हैं किन्तु जन्मभूमि तुर्की में प्रतिबंधित ही रहीं। नवंबर 22, 1950 को वर्ल्ड काउंसिल ऑफ़ पीस द्वारा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गयी। उनकी मृत्यु सोवियत रूस में हुई।
प्रस्तुत हैं यहाँ पर उनकी दो कवितायेँ -
आस्थावादी आदमी
बचपन में उसने कभी मख्खियों के पंख नहीं नोचे,
बिल्लियों की दुम में टीन के डब्बे नहीं बांधे उसने,
न माचिस की डिबिया में बंद किये भौंरे
या रौंदी दीमकों की बाम्बियाँ।
वह बड़ा हुआ
और ये तमाम काम उसके साथ किये गए।
मैं उसके सिरहाने था जब वह मरा।
उसने कहा मुझे एक कविता पढ़कर सुनाओ
सूर्य और समुद्र के बारे में,
परमाणु भट्टियों और उपग्रहों के बारे में,
मनुष्य की महानता के बारे में।
अनुवाद - विरेन डंगवाल .
छोटी लड़की
( छोटी लड़की नाज़िम हिक़मत की सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से है। हिरोशिमा की तबाही से दुनिया को सबक लेने का आह्वान करती इस कविता को कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विभिन्न भाषाओं में गया जा चूका है। )
मैं आ कर हर दरवाज़े पर खड़ी होती हूँ,
मगर कोई मेरी मौन आहट नहीं सुन सकता,
मैं दरवाज़ा खटखटाती हूँ, मगर अदृश्य,
क्यूंकि मैं सालों पहले मर चुकी हूँ।
मेरी उम्र सिर्फ सात साल है,
हालाँकि मैं सालों पहले मर चुकी हूँ, हिरोशिमा में,
मैं अब भी सात वर्ष की हूँ, जैसी तब थी,
मरे हुए बच्चे उम्र में नहीं बढ़ते।
मेरे बाल भयानक लपटों से झुलस चुके हैं,
मेरी आँखें देख नहीं सकतीं,
मौत ने मेरी अस्थियों को धूल में बदल दिया
और उस धूल को उड़ा दिया हवाओं ने।
मुझे न फल, न चावल, और न ही रोटी की भूख है,
मैं खुद के लिए कुछ नहीं मांगती,
क्योंकि मैं मृत हूँ,
क्योंकि मैं सालों पहले मर चुकी हूँ।
मैं सिर्फ इतना मांगती हूँ, सिर्फ इतना,
कि शांति के लिए,
तुम आज लड़ो, तुम सब आज लड़ो,
ताकि तुम्हारे इस जहां के बच्चे,
जी सकें, बढ़ सकें, खेल सकें, हंस सकें।
अनुवाद - अनिल पेटवाल.
साभार - आधारशिला .
5 comments:
वाह................
बेहतरीन रचना....मर्मस्पर्शी.......
सांझा करने का शुक्रिया मीता जी...
अनु
मीता जी ,
बेहतरीन रचना
हिरोशिमा का दर्द साकार हो उठा,साझा करने के लिए शुक्रिया
वाह ,,,, बेहतरीन रचना पढवाने के लिये आभार ,,,
आप सब को ये कवितायेँ पसंद आयीं, और आपने अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराया, हार्दिक आभार.
Post a Comment