आधारशिला पत्रिका के विश्व कविता अंक में छपी कई खूबसूरत कविताओं में से एक ,
युवा विद्रोही तिब्बती कवि तेनजिन त्सुंदे की लिखी हुई ,और अशोक पाण्डे द्वारा
अनुदित ये कविता मैं आप के साथ साझा करना चाहूंगी जो मुझे दिल तक छू गयी .
शायद इस का भाव, कि भले ही आप कहीं भी चले जायें , घर की याद टीस की तरह
साथ चलती रहेगी और एक दिन वापिस खींच कर ले जाएगी . तेनजिन की इस कविता
में तिब्बत लौटने की उम्मीद धडक रही है ... किसी रोज़ वापस ... अपने घर ... पर
उसके अलावा भी ये कविता सब की कविता है ... उन सब की , जो नए क्षितिज की
तलाश में घर से दूर ... और दूर होते चले गए हैं .
युवा विद्रोही तिब्बती कवि तेनजिन त्सुंदे की लिखी हुई ,और अशोक पाण्डे द्वारा
अनुदित ये कविता मैं आप के साथ साझा करना चाहूंगी जो मुझे दिल तक छू गयी .
शायद इस का भाव, कि भले ही आप कहीं भी चले जायें , घर की याद टीस की तरह
साथ चलती रहेगी और एक दिन वापिस खींच कर ले जाएगी . तेनजिन की इस कविता
में तिब्बत लौटने की उम्मीद धडक रही है ... किसी रोज़ वापस ... अपने घर ... पर
उसके अलावा भी ये कविता सब की कविता है ... उन सब की , जो नए क्षितिज की
तलाश में घर से दूर ... और दूर होते चले गए हैं .
अपने घर से तुम पहुँच गए हो
यहाँ क्षितिज तलक .
यहाँ से अगले की तरफ
ये चले तुम .
वहां से अगले
अगले से अगले
क्षितिज से क्षितिज .
हर कदम है एक क्षितिज .
क़दमों की गिनती करो
और उनकी संख्या याद रखना .
सफ़ेद कंकडों को पहचान लो
और विचित्र अजनबी पत्तियों को .
घुमावों को चीन्ह लो
और चारों तरफ की पहाड़ियों को,
क्योंकि तुम्हें
दोबारा घर आने की जरूरत पड़ सकती है .
अनुवाद - अशोक पाण्डे .
4 comments:
Thanks for sharing!
कविता के भावों को आपके कथ्य ने पूर्णतः संप्रेषित किया है!
सादर!
धन्यवाद अनुपमा .
Beautiful indeed!!
Thanks Giri :)
Post a Comment