वियतनामी कवि हू थिंह की लिखी इस कविता में प्रश्न सरल है ...
किन्तु उत्तर :-)
मैंने मिट्टी से पूछा:
कैसे रहती है मिट्टी मिट्टी के साथ?
- हम परस्पर करते हैं सम्मान .
मैंने पानी से पूछा:
कैसे रहता है पानी पानी के साथ?
- हम परस्पर को करते हैं परिपूर्ण .
मैंने घास से पूछा:
कैसे रहती है घास घास के साथ?
- हम परस्पर में गुँथ कर करते हैं क्षितिज निर्माण .
मैंने मनुष्य से पूछा:
कैसे रहता है मनुष्य मनुष्य के साथ?
..... ..... ..... .....
कैसे रहता है मनुष्य मनुष्य के साथ?
..... ..... ..... .....
मैंने मनुष्य से पूछा:
कैसे रहता है मनुष्य मनुष्य के साथ?
3 comments:
कल 22/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आभार यशवंत, ये प्यारी सी गहरी कविता वियतनामी कवि हू थिंह की लिखी है. आप इसे शेयर करेंगे तो मुझे प्रसन्नता होगी.
bahut hee alag tarah kee kavita hai..itni acchi rachna padhwane ke liye hadik dhnywad
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