Monday 19 August 2013

मैं प्रत्येक दुःख को मापती हूँ


एमिली डिकिनसन की एक हृदयस्पर्शी रचना जो पीड़ा के प्रति कवियत्री का दृष्टिकोण दिखाती है, और उन की चुनिन्दा लम्बी कविताओं में से एक है -

मैं प्रत्येक दुःख को मापती हूँ
और अपनी आँखें सिकोड़ कर टटोलती हूँ
मैं जानना चाहती हूँ क्या दूसरों का दुःख मेरे दुःख जितना ही भारी है
या उस से कुछ ज़रा हल्का।

मैं जानना चाहती हूँ कि क्या वे उसे बहुत दिनों से ढो रहे हैं
या वह बस अभी अभी शुरू हुआ है।
मुझे मेरे दुःख की उम्र याद नहीं
ये एक पुराना दर्द हो चला है।

मैं सोचती हूँ क्या जीना तकलीफदेह है
और जिंदा रहने के लिए उन्हें कोशिश करनी पड़ती होगी ?
और मुमकिन तो नहीं
पर यदि वे चुन सकते - तो क्या मृत्यु को चुनते !

मैंने देखा है किसी बहुत पुराने मरीज़ की
मुस्कराहट अरसे बाद लौट आती है
उस लगभग बुझते हुए दिए की तरह
जिस में तेल नहीं के बराबर रह गया हो ।

मैं सोचती हूँ दुःख की उस वजह पर
जब कई हज़ार साल की परतें चढ़ जाएँगी
जिसने उन्हें चोट दी है
तो क्या घाव पर कोई मलहम लग सकेगा ।

या फिर शताब्दियों तक
उन की नसों में वह दर्द दौड़ता रहेगा
उस वृहत्तर पीड़ा से परिचित कराते हुए
जो वृहत्तर प्रेम का विलोम है।

दुखी अनेकों हैं - मुझे बताया गया है
और दुःख के अनेक कारण हैं
मृत्यु - उनमें से एक है - और एक ही बार आती है
और दुःख को केवल देखने मात्र से मुक्ति देती है।

आवश्यकता एक दुःख है, और एक ठंडा दुःख है
जिसे हताशा कहते हैं
और दुःख है अपनों के बीच, अपने ही घर में
अपनाया न जाना भी।

मैं नहीं जानती वो कौन सा दुख है
ठीक से बता नहीं सकती - पर
कैल्वरी के समीप से गुजरते हुए
मैं एक चुभता हुआ सुकून महसूसती हूँ।

मैं गौर से देखती हूँ - तमाम तरह की सलीबें
और उन्हें पहनने के तमाम तरीके
और मान लेती हूँ
उन में से कुछ तरीके हूबहू मेरे जैसे हैं।

एमिली डिकिनसन
अनुवाद - मीता .

कैल्वरी - येरुशलम के समीप वह पर्वत जहाँ यीशु को सूली पर चढ़ाया गया था।
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मूल कविता -

I measure every grief I meet
With narrow probing eyes
I wonder if it weighs like mine
Or has an easier size

I wonder if they bore it long
Or did it just begin ?
I could not tell the date of mine
It feels so old a pain .

I wonder if it hurts to live
Or if they have to try
And whether, could they choose between
They would not rather die .

I wonder if when years have piled -
Some thousands on the cause
Of early hurt, if such a lapse
Could give them any pause

Or would they go on aching still
Through centuries above
Enlightened to a larger pain
By contrast with the love .

The grieved are many - I am told;
The reason deeper lies -
Death is but one, and comes but once
And only nails the eyes .

There's grief of want, and grief of cold -
A sort they call despair
There's banishment from native eyes
In sight of native air .

And though I may not guess the kind
Correctly yet to me
A piercing comfort it affords
In passing calvary .

To note the fashions of the cross
And ways in which it's borne
Still fascinated to presume
That some are like my own .

- Emily Dickinson .



7 comments:

अनुपमा पाठक said...

अद्भुत!
आपके जीवंत अनुवाद ने अभिभूत किया!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर सृजन बेहतरीन अनुवाद ,,,

RECENT POST : सुलझाया नही जाता.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर

दिगम्बर नासवा said...

बहुत संवेदनशील रचना है ...

Ramakant Singh said...

बहुत ही सुन्दर भावों से सजी कविता या रचना का खुबसूरत अनुवाद बधाई

शिवनाथ कुमार said...

आवश्यकता एक दुःख है, और एक ठंडा दुःख है
जिसे हताशा कहते हैं
और दुःख है अपनों के बीच, अपने ही घर में
अपनाया न जाना भी।


दूसरे के दुःख को जो माप लिया तो फिर अपना दुःख कम ही नजर आए
अनुवाद के लिए बहुत बहुत आभार !
वाकई बहुत सुन्दर रचना !

Meeta Pant said...

आप सभी का आभार .

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